देश में तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में पीएचडी करने की प्रक्रिया जल्दी ही नए नियमों के तहत बदल सकती है। ऑल इंडिया काउंसिल ऑफ टेक्निकल एजुकेशन (AICTE) ने इसके लिए एक नया फ्रेमवर्क तैयार किया है जिसे शिक्षा मंत्रालय से मंजूरी मिलते ही लागू किया जाएगा। अगर ऐसा होता है, तो टेक्निकल कोर्सेज से पीएचडी करने वाले अभ्यर्थियों के सामने कई नई शर्तें आएंगी।

नया फ्रेमवर्क कैसे बना?
AICTE ने तकनीकी शिक्षा में रिसर्च को और ज्यादा पारदर्शी व प्रभावी बनाने के लिए जुलाई 2025 में एक टास्क फोर्स का गठन किया था। बेंगलुरु यूनिवर्सिटी के पूर्व वाइस चांसलर प्रो. केआर वेणुगोपाल की अगुवाई में इस टास्क फोर्स ने नया फ्रेमवर्क तैयार कर उसे शिक्षा मंत्रालय के पास भेजा है। अभी तक पीएचडी के लिए UGC के नियम लागू होते थे, लेकिन नए बदलाव के बाद तकनीकी कोर्सेज के लिए अलग नियम बन जाएंगे।
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2.5 साल में पूरी होगी पीएचडी
सबसे बड़ा बदलाव पीएचडी की अवधि में किया गया है। जहां अभी इसे पूरा करने में लगभग 5 साल लगते हैं, वहीं नए नियमों के तहत योग्य उम्मीदवार 2.5 साल में ही अपनी थीसिस जमा कर सकेंगे। हालांकि इसके लिए उन्हें स्कोपस-इंडेक्स Q1 जर्नल में अपना रिसर्च आर्टिकल प्रकाशित कराना अनिवार्य होगा।
रिसर्च आर्टिकल पब्लिश कराना होगा ज़रूरी
नए प्रावधानों के मुताबिक पीएचडी उम्मीदवारों को अपना रिसर्च आर्टिकल केवल उन्हीं जर्नल या मैगजीन में प्रकाशित कराना होगा जो मान्यता प्राप्त और विशेषज्ञों द्वारा स्वीकृत हों। इससे यह सुनिश्चित किया जाएगा कि रिसर्च का स्तर उच्च और अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप रहे।
थीसिस में AI उपयोग की अनिवार्य जानकारी
फ्रेमवर्क में रिसर्च में AI (Artificial Intelligence) के प्रयोग पर भी स्पष्ट गाइडलाइन दी गई है। अभ्यर्थियों को थीसिस जमा करते समय यह डिस्क्लेमर देना होगा कि उन्होंने किस हद तक AI टूल्स का उपयोग किया है। हालांकि AI का इस्तेमाल करने की अनुमति है, लेकिन इसे छिपाना मान्य नहीं होगा। साथ ही कॉपीराइट, स्टेटमेंट और रेफरेंस की भी पूरी जानकारी शामिल करनी होगी।
रिटायर्ड प्रोफेसर भी बनेंगे गाइड
एक और महत्वपूर्ण बदलाव यह है कि अब पीएचडी अभ्यर्थी रिटायर्ड प्रोफेसर्स को भी अपना गाइड बना सकेंगे। इसके अलावा छात्रों को एक विश्वविद्यालय से दूसरे विश्वविद्यालय में माइग्रेशन की सुविधा भी मिलेगी, जिससे शोध कार्य में लचीलापन आएगा।
शिक्षा जगत में चर्चा
AICTE का यह मसौदा लागू होता है तो तकनीकी शिक्षा से पीएचडी करना पहले से कठिन जरूर होगा, लेकिन इसकी गुणवत्ता और मानकीकरण भी बेहतर होगा। अब सबकी निगाहें शिक्षा मंत्रालय के फैसले पर टिकी हैं कि इस फ्रेमवर्क को कब हरी झंडी मिलती है।