
Land Acquisition Verdict: कई बार सुनने को आता है कि सरकार ने लोगों की निजी जमीन को जबरन अपने नाम कर लिया है। ऐसा सुनकर कई परेशान हो जाते हैं कि यह बात सच है या नहीं। लेकिन अगर आप सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सुनते हैं तो आप अपनी जमीन के लिए निश्चिंत हो सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने जमीन मालिकों के लिए हाल ही में एक अहम फैसला सुनाया है जिसके तहत नागरिकों के संपत्ति अधिकारों को और भी मजबूत कर दिया गया है।
अब सरकार किसी भी व्यक्ति की निजी जमीन को जबरदस्ती नहीं ले पाएगी। जब तक सरकार उस व्यक्ति की जमीन का मुआवजा नहीं देगी और क़ानूनी रूप से उसे अपने नाम नहीं करती है तब तक जमीन पर कोई भी कब्जा नहीं कर पाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला हिमाचल प्रदेश के जुड़े एक बहुत पुराने मामले में लिया है। आइए पूरी जानकारी जानते हैं।
पूरे मामले की जानकारी!
यह मामला बहुत पुराना है लगभग 1970 का है। हिमाचल प्रदेश की सरकार ने सड़क बनाने के लिए दशकों पहले एक व्यक्ति से संपत्ति ली थी जिसके लिए कोई भी क़ानूनी मंजूरी नहीं ली गई साथ ही उस व्यक्ति को उसकी जमीन का मुआवजा भी नहीं दिया गया था। जमीन मालिक से बड़ा अन्याय हुआ और फिर उसने कोर्ट में न्याय की मांग की लेकिन वहां सरकार ने कहा कि यह मुकदमा बहुत देर से दायर किया गया इसलिए यह ख़ारिज होना चाहिए।
कोर्ट ने दिए सख्त निर्देश
जब सुप्रीम कोर्ट ने यह पूरा मामला सुना और फिर सरकार द्वारा भी यह बयान दिया गया तो सुप्रीम कोर्ट ने उसे तुरंत ही रिजेक्ट कर दिया और कहा कि समय कितना भी पुराना क्यों न हो लेकिन जमीन पर किया गया अवैध कब्जा वैध कभी नहीं नहीं माना जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 300-A के तहत फैसला सुनाते हुए कहा कि सरकार क़ानूनी प्रक्रिया का पालन करके और जमीन का मुआवजा दिए बिना व्यक्ति को उसकी जमीन से वंचित नहीं कर सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के लिए सख्त रुख लिया और आदेश दिया कि चार महीनों के अंदर जमीन मालिकों को उनका मुआवजा मिलना चाहिए। इसके साथ ही मानसिक तनाव और लम्बे समय से उन्हें नुकसान हुआ है उसके लिए अतिरिक्त राशि, 2001 से 2013 तक का जितना भी ब्याज लगा है और क़ानूनी खर्च के लिए 50,000 रूपए देने का निर्देश दिया है। सरकार को इन सभी निर्देश का पालन चार महीनों में करना है।
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यह फैसला है बहुत महत्वपूर्ण
यह फैसला लाखों जमीन मालिकों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हैं और उन्हें संपत्ति के अधिकार पूरे मिलते हैं। यह फैसला राहत भरा है क्योंकि संविधान के तहत आपकी जमीन सुरक्षित है और इसमें सरकार द्वारा कोई भी हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है। अगर आपके साथ ऐसी कोई घटना हुई है जिसमें आपको न्याय है मिलता तो आप इन अधिकारों के तहत न्याय की मांग कर सकते हैं।